-१-
अजहुँ चमचा ही रहि पायौ।
चमचा बनौ भगौननि कौ बहु
जीवन वृथा गंवायौ।
छोटे - बड़े भगौना देखे
सेवाहित हों धायो।
जूता पोंछे गाड़ी पोंछी
पोंछा घरहु लगायौ।
सिगरे घर कौ चमचा बनि गयौ
सबनें हुकम चलायौ।
सब्जी लाय धरी मंडी तें
मेम साब घुमवायौ।
बच्चा छोड़ि मदरसा में फिरि
उन्हें सांझ घर लायौ।
मिलिवे वारे यार -दोस्त कूं
नास्ता जलहु पिवायौ ।
खूँटी टांगि दई सिग इज़्ज़त
अपनों मान गवांयौ।
सोची मैंने बनूँ भगौना
परि न अजूं बनि पायौ।
चमचा बनौ जवानी अपनी
अबहूँ चमचा पायौ।
"शुभम" बुढापौ आयौ तन पे
परि चमचा ही पायौ।।
-२-
सुनौ मेरी चाहत वंशी वारे।
अगलौ जनम हों बनूँ भगौना
है जायँ वारे - न्यारे ।
चिलम भरत बनि चमचा इनकौ
करि लियौ जीबन ख़्वारे।
गिर्राजी की करि परिकम्मा
बनूँ भगौना प्यारे।
राधा राधा नाम रटउ नित
मेरी लियौ खबरि किशना रे।
छोटे -बड़े भगौननि मुँह लगि
तन - मन है गए कारे।
देखि सुपेदी बगुलपंखी
मन में ललक जगा रे।
भरी भगौनी देखी कितनी
तन -मन हूं डूबा रे।
करौ प्रमोशन अब चमचा तें
बड़ौ भगौना प्यारे।
"शुभम" सात पीढ़ी के सिगरे
होंय परबंध हमारे ।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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