दिये जलाना ही मेरा काम है,
तमस हटाना ही मुझे विश्राम है।
न मैं सूरज न कोई चंदा हूँ,
अदना - सा नाचीज़ बंदा हूँ।
न तारा हूँ न नखत अम्बर का,
जुगनू की तरह रौशनी ही धाम है।
दिये जलाना ही......
दिये का काम ही दिए जाना है,
प्रेम के तेल को नित जलाना है।
नेह की बाती में नित आग है,
रौशनी फैलाना मेरा सु-भाग है।
दिये जलाना ....
रात का अँधेरा कि धुंधली शाम हो
मगर रौशनी न कहीं बदनाम हो।
ये नहीं कहना कि दियाजलाया नहीं,
हर राह पे रौशनी मेरा काम है।
दिए जलाना.....
आँधियाँ आएं कि चलें तूफां कितने
तमाम झंझाओं में मेरा दीप जले।
बदले में चाहिए नहीं कुछ भी मुझको,
उजाले बिखेरना तो मेरा काम है।
दिये जलाना.....
नाम दिया है तो दिए जाना है,
बस प्रकाश का दिया जले जाना है
क्षीण हो रही है वक़्त की बाती,
बाती को नित जलाने तक ही विराम है।
दिये जलाना.....
कोई अपना हो कि पराया हो,
प्रिय अप्रिय हो कि अनभाया हो।
बिना भेद किए बस दिए जाना है
प्रतिरोध है न प्रतिशोधी काम है।
दिये जलाना ....
"शुभम" सुखी हों सभी ज्ञानी स्वस्थ इंसां हों,
अपने प्राणों की तरह ,न कहीं हिंसा हो,
मन वचन से न कर्म से आहत न करूँ
जिओ और जीने दो की ज्योति दान है।
दिये जलाना ही ....
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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