गुरुवार, 13 सितंबर 2018

हमारी हिंदी

माता   मातृभूमि  माँ -भाषा।
जीवन की विश्वास सदाशा।।

प्रथम गुरु   माँ  ने दी वाणी।
सुख दुःख की सहाय कल्याणी।।

हिंदी   भारत माँ  की बिन्दी।
शुभ्र ललाट पर सोहित हिंदी।

प्रथम बोल   दे माँ ने दे दी।
बनी   शारदा  जननी मेरी।।

तुम्हीं दिवाली होली  हिंदी।
तुम्हीं दशहरा  पावन हिंदी।।

रक्षाबंधन संक्रांति हो हिंदी।
सहज सलौनी क्रांति हो हिंदी।

चैत्र वैशाख  ज्येष्ठ   आषाढ़।
सावन भादों कार्तिक क्वार।।

अगहन पौष माघ औ' फागुन।
हिंदी  द्वादश मास हो पावन।

षड्ऋतुएँ  मनभावन पावन।
 गरमी  सर्दी वर्षा सुहावन।।

ग्रीष्म पावस    सुखद शरद।
शिशिर हेमंत    वसंत प्रवर।।

शिरा -शिरा  में बहती हिंदी।
रुधिर बिंदु हर बसती हिंदी।।

तुम्हीं सूट   साड़ी   सलवार।
कुर्ता  पायजामा   अवतार।।

हिंदी ने   ली   साड़ी  धार।
उर्दू धरे  कुरता   सलवार।।

वैज्ञानिकता  पूर्ण  है भाषा।
कहते जिसको हिंदी भाषा।।

कंठ तालु मूर्द्धा  के क्रम से।
दन्त्य ओष्ठ्य पचवर्ग नियम से।

क च ट त प का अनुक्रम है।
इसमें  कोई   नहीं भरम है।।

ग्यारह स्वर व्यंजन इकतालीस।
हिंदी है सबसे इक्कीस ।।

ड़ ढ़   दो उत्क्षिप्त   व्यंजन।
अं अ: अयोगवाह का गुंजन।

चार संयुक्त अक्षर बनते हैं।,
शेष मूल   तेंतीस   रहते हैं।।

देवनागरी कज़ ये रूपाकार।
उद्भित जिनसे भाव विचार।।

गाना, रोना, हँसना , सपना।
सब  हिंदी में   होता अपना।।

सोच विचार की भाषा हिंदी।
"शुभम" मातृभू की भ्रू बिंदी।।

💐शुभमस्तु !

✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"


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