गुरुवार, 21 मार्च 2019

कीचड़ माई की जय (व्यंग्य)

   सपूतों की माताएँ सदा से उस सम्मान की अधिकारिणी मानी जाती रही हैं, जिन्होंने अपनी कोख से सपूत को जना होता है। ऐसा नहीं कि पिता सम्मान का अधिकारी न हो, किन्तु ये संसार प्रत्यक्ष को कुछ ज़्यादा ही महत्त्व प्रदान करता है। पिता तो पर्दे की चीज़ है। भले ही जन्म के बाद पिता का ही नाम अधिक चलता है। ये अलग बात है कि आज पिता के साथ साथ माता का नाम लिखने का फैशन शुरू हो गया है। माता पर्दे में ही रहती है। वह पर्दानशीं जो ठहरी ! जब वह भी पर्दे से बाहर आने लगी , तो पिता के नाम के साथ अपना नाम भी लिखाने लगी। केवल इन्होंने ही नहीं , सपूत के जनन में इनका ही नहीं , मेरा भी नौ महीने का योगदान है। इनके बिना गर्भ धारण नहीं हो सकता था ,ये ठीक है। लेकिन मेरे नौ महीने के कठिन तप का भी तो नाम प्रकशित होना ही चाहिए।पिता ने सोचा ,चलो तुम भी लिखा लो अपना नाम। बेटा तो मेरा ही कहेगी दुनिया। हाँ, तुम्हारे मैके वाले जरूर तुम्हारा ही बेटा कहेंगे। कोई बात नहीं ,तुम्हारी ख़ातिर ये भी सहेंगे।
   इसीलिए तो कहता हूँ कि कीचड़ मैया की जय। जिस कीचड़ मैया ने कमल जैसा पूत ही नहीं , सुपूत जना, जिसके नाम से इन्सान इतना तना कि एक दल ही बन गया घना। अब किस- किस को करोगे मना कि ये तो कीचड़ मैया ने जना , इसलिए इससे रखो एक दूरी बना। पर जिसका पूत पूत से सुपूत हो जाए ,लक्ष्मी का आसन कहलाए , देवों के सिर चढ़कर इतराए, उसकी माता के किछड़पन को कौन याद रख पाए। पर कमल की मैया कितनी सोभाग्यशालिनी है कि उसके सुपूत का सर्वोच्च सम्मान है। किसी भी फूल को न इतना मान है, न इतनी ऊँची शान है । कीचड़ से जन्म लेकर भी जल तक से निर्लिप्त। ऊपर आया कि लुढ़काया। पर पूर्वजों ने कहा है कि माँ पर पूत पिता पर घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा इस कथन के आधार पर तो जब तक माँ में अच्छे लक्षण नहीं होंगे, तब तक वे महान गुण संतति में आ ही नहीं सकते। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि निश्चय ही कीचड़ मैया पूजनीय, वंदनीय , सम्माननीय और अभिनंदनीय है।उसने अवश्य कोई ऐसी गुप्त तपस्या की है, जिससे उसे कमल जैसा सुपूत मिला । थोड़ा बहुत अनुमान तो लगाया ही जा सकता है।इसके लिए कीचड़ के जन्म के विषय में जानना आवश्यक होगा।
   आपके घर की सफाई, घी, डालडा, तेल की खवाई, माखन, क्रीम की चिकनाई, फ़ल, सब्जी, दाल  रोटी ,दूध-मलाई, घर की नाली में जन्मी कीचड़ माई। ताल- तलैया, तक गहरे में पहुँचाई, जहाँ कमल से कीचड़ की कोख हरियाई। पंक- पिता के सानिंध्य में कमल जैसे सुपूत को जनमाई। इसलिए धन्य कमल की माई। जानो सब बहना भाई।। इसलिए तो बोलता हूँ कि
कीचड़  माई की  जय!
कमल - जननी की जय!!
कमल - नयन की जय!!!
कमल -  चरण  की जय!
कमल - वरण  की जय!!
कमल -शरण की जय!!!
कमल -वदन  की जय!!!
कमल - गुणन  की  जय!
कमल - सुजन की जय!!

 शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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