श्याम रंग में मत रंगो,
यह अचरज की बात।
पहले ही तुम श्याम थे,
जैसे काली रात।।
जिनके चेहरे श्याम हैं,
दामन काले स्याह।
होली में उनकी गज़ब,
कैसी अद्भुत चाह।।
मन हैं काले पंक - से
तन पर मले गुलाल।
माथे पर चंदन -महक,
नेताजी का हाल।।
धवल वसन तन शोभते,
चटख होलिका रंग।
मन हैं जिनके दुग्ध सम ,
'शुभम' न होना दंग।।
होली तब अच्छी लगे,
मन हो निर्मल नीर।
कीचड़ पर कीचड़ लगी,
जैसे कौआ कीर।।
करतलकालिख पोतकर,
चेहरे रहे बिगाड़।
बैठे नाव चुनाव की,
कर होली की आड़ ।।
केसरिया नीले हरे,
होली के रंग लाल।
पिचकारी ले - ले खड़े,
जनता की कर ढाल।।
असली होली खेल लो,
फ़सली का इंतज़ार।।
किसका रंग किस पर चढ़े,
यह जाने करतार।।
विदा हुआ फ़ागुन 'शुभम',
चेतो पहला मास।
चैत्र मंजु मधुमास है,
ऋतुराजा का वास।।
होली की ज्वाला जले,
जलें वैर विद्वेष ।
मानव-उर की कीचड़ें,
कण भर रहें न शेष।।
साँवरिया ब्रजभूमि का,
लिए गोपियाँ साथ।
होली खेले झूमकर ,
'शुभम' नवाए माथ।।
💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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