डुगडुग बजती डुगडुगी,
टी वी टी वी शोर।
मस्त मदारी मदभरे,
फिरते चारों ओर।।
बंदर बंदरी नाच का ,
लेने को आनंद ।
बच्चे ताली पीटते ,
मोद मग्न लय छन्द ।।
जनता बंदर बंदरिया ,
खड़ी देखती खेल।
नारों से कैसे चले ,
लोकतंत्र की रेल ।।
मीठे दाने डालकर ,
ललचाते खग कीर।
जिसने फांसे अधिकतम,
वही विजेता वीर।।
मित्र तमाशा मत बनो ,
लो दर्शन - आनन्द।
जगहांसी का शौक़ जो,
कूद पड़ो मत -द्वंद्व ।।
मन्त्र बिना क्या तन्त्र है,
तंत्र बिना क्या यंत्र।
देश यन्त्र है लोक का ,
मानव हुआ स्वतंत्र।।
तुम बंदर तुम बंदरिया,
बँधे कपट की डोर।
दुम जिसकी भी उठ गई,
कहलाता वह चोर।।
कसकर दुम चिपका खड़ा,
नज़र आ गया काश!
जनता में होगी हँसी,
होगा पर्दाफाश।।
जोर ज़ुल्म अपराध ही ,
जिनकी ऊँची शान।
टिकट उन्हें पहले मिले,
जहाँ नोट की खान।।
बलात्कार दुष्कर्म के ,
डिग्रीधारक धीर।
ताल ठोंक मैदान में,
खड़े बहुत रणवीर।।
सीमाओं को पार कर,
संपत्ति जिनके पास।
पहला हक है टिकट पर,
वे क्यों रहें उदास।।
💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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