शनिवार, 23 मार्च 2019

बज गई डुगडुगी (दोहे)

डुगडुग बजती डुगडुगी,
टी वी      टी वी     शोर।
मस्त    मदारी   मदभरे,
फिरते     चारों     ओर।।

बंदर  बंदरी   नाच   का ,
लेने      को      आनंद ।
बच्चे     ताली     पीटते ,
मोद  मग्न  लय  छन्द ।।

जनता   बंदर    बंदरिया ,
खड़ी     देखती     खेल।
नारों    से    कैसे     चले ,
लोकतंत्र     की      रेल ।।

मीठे     दाने     डालकर ,
ललचाते     खग    कीर।
जिसने फांसे अधिकतम,
वही      विजेता    वीर।।

मित्र   तमाशा  मत बनो ,
लो      दर्शन -  आनन्द।
जगहांसी  का शौक़ जो,
कूद   पड़ो   मत -द्वंद्व ।।

मन्त्र  बिना क्या तन्त्र है,
तंत्र    बिना   क्या  यंत्र।
देश  यन्त्र  है लोक का ,
मानव    हुआ   स्वतंत्र।।

तुम बंदर    तुम बंदरिया,
बँधे    कपट   की   डोर।
दुम जिसकी भी उठ गई,
कहलाता     वह    चोर।।

कसकर दुम चिपका खड़ा,
नज़र  आ गया  काश!
जनता  में  होगी हँसी,
होगा        पर्दाफाश।।

जोर ज़ुल्म अपराध ही ,
जिनकी   ऊँची    शान।
टिकट उन्हें पहले मिले,
जहाँ  नोट    की खान।।

बलात्कार    दुष्कर्म  के ,
डिग्रीधारक          धीर।
ताल    ठोंक    मैदान में,
खड़े    बहुत    रणवीर।।

सीमाओं    को  पार कर,
संपत्ति    जिनके    पास।
पहला हक है टिकट पर,
वे   क्यों     रहें   उदास।।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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