रविवार, 24 मार्च 2019

मदारी और जमूरा (व्यंग्य)

आइए !  आइए!! आइए!!!
खेल   की   शोभा बढाइये!
बहनो ! भाइयो !! भाभियो!!!
लोकतंत्र     की    चाभियो!
तुम्हारी गली में आ गया फिर मदारी!
पोटली अपनी  इस ग्राउंड में
उतारी!
नए -  नए खेल  करतब  भी  दिखलायेगा,
दिखाए बिना खेल नहीं यहाँ से जाएगा,
हँसेगा रोयेगा पर तुमको 
बहलाएगा ,
जरूरत पड़ी तो आहिस्ते -आहिस्ते सहलायेगा।
अरे ओ जमूरे तू किधर है
कहाँ है ,
आया उस्ताद मेरी तशरीफ़
यहाँ है ।
कहिए फरमाइए क्या हुक्म
मेरे आका ,
कसम है तुझे जो इधर -उधर
झाँका !


मदारी बोला :खेल दिखलाएगा ?
हाजिरजवाब हुआ जरूर दिखलाएगा।
कुछ सवाल हैं तुझसे जवाब
देगा ?
क्यों नहीं मेरे आका क्यों नहीं देगा ? 
तो बता : तू नेता की कहेगा  या जनता की ?
-कहूँगा तो हक में बात सिर्फ़
नेता की ! 
-क्यों क्या तुझे जनता से नहीं कोई वास्ता ?
-मेरा तो भला करते हैं नेताजी
हर रास्ता।
जनता से मुझे क्या लेना देना है ?
मुझे तो अपने नेता के चरण-
चुम्बन करना है।
जनता तो भेड़ है किधर भी
चली जाएगी !
जो होगा भुजबली उसकी गोद में लिपट जाएगी।
धनबलियों ने मीडिया तक
खरीद लिया!
सुन सुनकर टी वी पर नेताजी
का मुरीद हुआ !
 अरे उस्ताद ! तुम जनता की
बात करते हो!
ये बे पेंदे के लोटे हैं  जो किधर भी लुढ़कते हैं!

मदारी बोला :तुझे जनता के बीच नहीं रहना है ?
बता इस सवाल पर तुझे क्या
कहना है ?
कहने लगा जमूरा : जनता वही है जो नत है नेता के
 आगे! 
नेता के जबड़े से औऱ कहाँ
भागे?
मैं तो नेताजी का अच्छा खासा चमचा हूँ,
कभी खीर में कभी चासनी
में लिपटा हूँ।
ना ! ना!! ना !!! मुझे भेड़ों
का  साथ  नहीं  भाता !
जनता को तो बस नेताजी
के पीछे लड़ने में मज़ा आता!
वीडियो   बनाते हैं,
झूठी खबरें छपाते हैं,
उनके अंधे भक्त बन
हर हथकंडे अपनाते हैं,
आपस में लड़ते हैं इन्हीं
नेताजी के लिए!
जैसे सड़कों पर कुत्ते एक
टुकड़े के लिए! 
ठीक है जमूरे तेरी जैसी मर्ज़ी,
तेरी बात कभी होती नहीं फ़र्जी।
-ये भी तो बता दे जीत किसकी होगी।
-हारेगी जनता जीत नेताजी की होगी।
जनता तो सदा  नेता के लिए ही होती है।
उसी के लिए हँसती है उसी के लिए रोती है ।
उपभोग की वस्तु है उस्ताद जी ये जनता,
उपभोक्ता है नेता जी एस टी भी नहीं देता! 
इतना भी बता दे जमूरे  यदि नेता न हों तो क्या हो! 
ऐसा ज़ुल्म मत करना उस्ताद चमचे भूखों मर जायेंगे!
सियासत रहेगी जिंदा तो ये भी तर जाएंगे।
सियासत- भक्तों और चमचों की इनसे ही चलती है रोटी,
सचिवालय के भीतर बाहर
फिट करते हैं यही गोटी!
विश्वास न हो तो दारुल शफा 
जाकर मजमा लगाओ!
बगबगे सूट में  उनके दर्शन
कर आओ।
चल ठीक है आज ही
 गोमती में टिकट बुक कराते हैं,
 कल का मजमा दारुल शफा के गेट पर लगाते हैं।

💐शुभमस्तु !
✍लेखक /रचयिता ©
🙉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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