मंगलवार, 26 मार्च 2019

जमूरा उवाच (व्यंग्य)

  मदारी ने फिर सवाल दागा,
 कैसे मिलता है सोने को सुहागा ? 
जमूरे बता तो यही ,
तेरी समझ से क्या बात है सही?
कहने लगा जमूरा ,
फांक कर मुँह में मुट्ठी
भर बूरा: 
आपने भी क्या सवाल 
किया है उस्ताद!
सोचकर बताता हूँ बिना
कोई विवाद!
अरे! ये भी कोई खास है!
ये अच्छा खासा परिहास है,
नेता जी के पीछे जुड़ी हुई 
पूँछ!
भले ही न हो चेहरे पर मूँछ !
पर पूँछ तो बहुत लाज़मी है!
इसीसे नेता बड़ा आदमी है!
जिसकी जितनी लम्बी पूँछ
उतना बड़ा नेता ,
भाड़े की हो भले पर जयजयकार का सुभीता,
इसीलिए  तो आए दिन झमझमाती   हैं   रैलियां!
जिनमें खनखनाती हैं
नोटों सिक्कों की थैलियां!
वैसे तो ये जनता मात्र 
एक  चमकीला रैपर है,
मूर्खों के लिए अजीब
गिफ्ट हैम्पर है!
जिसे पेकिंग खुलने के बाद
कचरादान में दान कर देते हैं,
मक्खन निकालकर
 नाली को महान कर देते हैं,
कीमत रैपर की नहीं,
अंदर भरे माल की है,
चमकीला मजबूत आकर्षक
होता है रैपर,
'यूज एंड थ्रो' का फार्मूला
बेशक!
 रैपर से ही माल ऊँचे 
दाम पर बिकता है,
हवा से भरा चिप्स- पैकिंग
कितना महँगा चलता है,
जनता - रूपी  रैपर में
हवा ही तो भरनी है!
जिससे उनकी दुकान
खूब- खूब  चलनी है,
रैपर का महत्व 
पैकिंग बिकने तक,
उसके बाद नाली सड़क गली
कचरा और कूड़े  का पथ!
यही तो नेताजी के लिए
सोने में सुहागा है,
लगना तो ज़रूरी बहुत
सुहागे का  टांका है,
उत्प्रेरक जो ठहरा,
काम के बाद 
'गेट आउट' दुल्हेराजा का सेहरा,
दूल्हा दूल्हा है 
सेहरा सेहरा है,
अँधेरे में चमक के बाद
वह अंधा और बहरा है!
रैपर का तेवर 
बस एक इंच गहरा है।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍏 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...