हमारा और हमारे देश का यह परम सौभाग्य है कि यहाँ नेता हैं। नेता हैं इसलिए देश आगे जा रहा है।' नेता ' शब्द का शाब्दिक अर्थ भी तो यही है ' आगे ले जाने वाला'। देश को आगे ले जाना है ,यह तो वे अच्छी तरह जानते हैं, किन्तु कहाँ ले जाना है ? कितना आगे ले जाना है ? किस ओर आगे ले जाना है ? ऊपर की ओर या नीचे की ओर? उजाले की ओर या जाले की ओर? अंधकार की ओर या प्रकाश की ओर? इसका अभी उन्हें ज्ञान नहीं है ।बस आगे ले जाना है। सो वे आगे ले जाने में जुट गए हैं। आगे ले जाते ले जाते यदि ज़्यादा आगे निकल गए तो भी खतरा है। क्योंकि यदि चालक वाहन चलाते -चलाते दिल्ली जाते समय दिल्ली से आगे निकल जाए तो लौटना ही पड़ेगा। वक़्त भी ज़्यादा बर्वाद , ईंधन भी ज़्यादा जलेगा।अंततः लौटना तो पड़ेगा ही। यदि आगे आगे चलने की होड़ में इतना भी आगे चले गए कि थल से सागर में ही गोते खाते लगे, तो भी मुसीबत। इसलिए देश को ज़्यादा आगे ले जाना भी ख़तरे से खाली नहीं है। अरे माननीयो ! देश को आगे तो ले जाइए पर सोच -समझ कर ही आगे बढ़िए।
देश को आगे ले जाना, पर इतना मत भूल जाना कि यहाँ की जनता ,जिसमें आप अपने को शामिल नहीं करते , पर हैं तो आप भी शामिल। क्योंकि आप पहले जनता हैं , फिर नेता । जनता ही नेता की जन्मदाता है , जन्मदात्री भी है। जनता नहीं , तो नेता भी नहीं। इसलिए मानो या न मानो पहले आप जनता , बाद में आप नेता बनता। ये अलग बात है कि आप जनता की नहीं सुनता। जनता की नहीं मानता। क्योकि आप इस देश के सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी हैं। बुद्धिमान होने के लिए एम .ए., पी एच. डी.की डिग्रियाँ हासिल करना जरूरी नहीं है। इसके लिए बुद्धि चाहिए बुद्धि। पढ़ने लिखने का बुद्धि से कोई सम्बन्ध नहीं है।तमाम एम.ए पास निरे मूर्ख मिल जाएंगे। और तमाम अँगूठा छापने वाले नेता आई ए एस को भी आदेशित करते हुए मंत्री बनकर डाँटते -फटकारते , उनकी सी आर लिखवाते , सजा के रूप में ट्रांसफर करते , धमकियाते, गरियाते, जुटियाते मिल जाएंगे। ऐसे देश के कर्णधारों पर देश को गर्व है कि वे देश को आगे ले जाने के लिए शिक्षा , शिक्षक और शिक्षालयों को कोई महत्व न देकर सिर्फ़ औऱ सिर्फ़ अपनी बुध्दिमता को ही सलाम करते हैं। जब वे करते हैं तो हमें अर्थात देशवासियों को उन्हें सलाम करना मज़बूरी हो जाती है। अरे भई! देश को आगे जो ले जाना है।
आए दिन टी वी चैनल, नेताओं के भाषण , अख़बार सभी चिल्ला चिल्लाकर आंकड़े पेश कर रहे हैं कि देश कितना आगे बढ़ गया है। कितने शौचालय बने , भले ही कागज पर बने, पीली ईंटों और बालू से चिने, पर बने तो सही। कुछ प्रधानों की प्रधानता से बने , कुछ सचिवों की महानता से सने -पर बने। जो खांड खुंदेगा वही खांड खायेगा भी , सो ये नेता प्रधान जी नाली , खड़ंजा, शौचालय , निर्माण में 45 परसेंट खांड खा रहे हैं , तो आपकी जेब से क्या जा रहा है। सरकार का है सरकार के नेता- प्रधान , प्रधान - नेता , अधिकारी -नेता , अधकृत नेता , खा रहे हैं। तो जनता को क्यों आपत्ति हो? वे सभी मिल कर देश को आगे ले जा रहे हैं। यही तो माननीय नेताओं का कर्म है , धर्म है। सौभाग्य है देश का कि हमें ऐसे देश को आगे ले जाने वाले नेता मिले हैं।
देश के नेता जिंदाबाद!
जिन्दाबाद , जिन्दाबाद!!
शुभमस्तु!
✍ लेखक©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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