गुरुवार, 14 मार्च 2019

मच्छर - उवाच [अतुकांतिक ]

भू भुवन के वासी इंसान,
हम भी हैं 
अपने माँ-बाप की संतान,
किन्तु हमारी रगों में
बहता है 
तुम्हारा ही रक्त ,
इसीलिए तो हैं
हम आप इंसानों के भक्त,
मिश्रित ही सही
कभी तुम्हारा 
कभी उनका
रक्त हम पीते हैं,
तुम्हारे ही रक्त से
तो हम जीते हैं,
हमारा और तुम्हारा 
है बहुत ही निकट का रिश्ता,
तुम्हीं तो हो
हमारे लिए फ़रिश्ता,
तुम्हारे ही भाई -बहन हैं हम
बहुत ही आभार तुम्हारा,
जो हम जीवन धारण करते हैं
उसका तुम ही हो सहारा,
और उधर तुम
हमारे संहार के लिए,
बनाते हो टनों मनों
कॉइल , ऑल आउट,
गुड नाइट, अगरबत्तियां,
जिनसे उजड़ जाती हैं
हमारी बस्तियां,
बड़ी -बडीं हस्तियाँ।

हमारे विध्वंश के लिए
न जाने क्या - क्या बनाते हो,
लगाते हो बिस्तरों पर
मच्छरदानियाँ,
फिर भी हमें
नहीं रोक पाते हो।

चोरी से नहीं,
पहले तुम्हारे कान में
सुनाते हैं संगीत मधुर,
उसके बाद चुपके से
चूस ही लेते हैं,
तुम्हारा लाल लोहू सुघर।

अवसरवादी हैं हम पूरे
माननीय नेताजी की तरह,
अपना काम कर ही लेते हैं
समस्त आवरणों को भेदकर,
इतने भी दुस्साहसी हैं हम,
कि मरने से नहीं डरते हैं,
अपने विश्वास की रक्षा 
इसी दर्शन से करते हैं,
कि आत्मा अमर है
पुनर्जन्म होना ही है,
अगले जन्म में
योनि परिवर्तन करके
सांसद विधायक मंत्री जी
बनना ही है,
काम तो बस वही 
इस मच्छर -योनि का,
तुम्हारे रक्त से अपना 
और अपनों का 
उदर भरना ही है।

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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