बुधवार, 27 मार्च 2019

आजकल की [छन्द :कुण्डलिया]

तेरे   दर   याचक  खड़े,
ओढ़   शेर  की   खाल।
अवसरवादी  खुदगरज,
चलें   हंस   की  चाल।।
चलें     हंस   की  चाल ,
प्रलोभन   धन  के  देते।
लक्ष्मण -  रेखा     पार,
डाल    झोली  में  लेते।।
गली -    गली   में  घूम ,
लगाते   सौ- सौ    फेरे।
धूल   चाटते   देहलीज,
की    दर     पर    तेरे।।


दाना    उसको   डालिए,
जो   हो   योग्य   सुपात्र ।
दान उसी  को है  उचित,
जनहितकारी      मात्र।।
जनहितकारी        मात्र,
सदा जनताहित करता।
स्वार्थी   कपट   कुचाल ,
तिजोरी  अपनी  भरता।।
देखा -परखा बहुत कुछ,
नहीं  अब भी  पहचाना ?
व्यर्थ      जाएगा    यदि ,
गिध्दों  को डाला  दाना।।


कौआ कोयल गिद्ध जी,
आये       तेरे         द्वार।
चुनना  केवल    एक ही,
असमंजस     भरमार।।
असमंजस        भरमार ,
बाज जी   ताक  लगाए।
जाएँ    कोयल      गिद्ध,
सामने  वह   आ  जाए।
लोकतंत्र को बना दिया,
है      काला      हौआ ।
हंस     मोर     चुपचाप , 
चीख़ते  काले  कौआ।।


भाले    बरछी   कैंचियाँ ,
किसको   लूँ    अपनाय।
चाकू  छुरा   कटार   का,
वार    भयंकर    जाय।।
वार    भयंकर     जाय,
सुई सीती  बस  सीती।
नहीं       बहाती    खून,
भरोसे  अपने  जीती।।
तूती    की     आवाज़,
पड़े   हैं जड़िया  ताले।
शोर कर रहे चकाचोंध,
भर    बरछी     भाले।।


मजे  खिलाड़ी दाँव से,
खेल    रहे    हैं    खेल।
आस धोबियापाट की,
दण्ड    रहे   वे    पेल।।
दण्ड    रहे    वे   पेल ,
पटखनी  उनको दे दें।
सेहरा     बाँधे    शीश ,
चक्रव्यू'  पल   में भेदें।।
पाले    बदले   जा रहे,
नहीं   वे   रहे अनाड़ी।
ऊँची  कुरसी  के लिए,
सज रहे मजे खिलाड़ी।।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता  ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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