शुक्रवार, 6 मई 2022

सजल 🪷


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समांत : आर।

पदांत : चाहिए।

मात्राभार :16.

मात्रा पतन:शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हर  मानव   को प्यार चाहिए।

जीने  का    आधार  चाहिए।।


समाधान    संग्राम    नहीं   है,

सुदृढ़  नव  सुविचार  चाहिए।


सभी चलें अपने सत पथ पर,

सबको यह अधिकार चाहिए।


जंगल का कानून उचित क्या,

नहीं जगत  को   रार चाहिए।


मत झटको आमों  की डाली,

बाग  हमें   फलदार  चाहिए।


तूफानों  में  राह  न  मिलती,

श्रम   सेवित  संसार चाहिए।


'शुभम्' खड़े हों निज पैरों पर,

जन- जन को उपहार चाहिए।


🪴शुभमस्तु !


०२.०५.२०२२◆५.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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