सोमवार, 1 अप्रैल 2019

पंजीरी बंट रही है! [गीत]

अँजुरी भर-भर पँजीरी बंट रही है।
शक्ति घोड़ों की निरन्तर घट 
रही है।।

पुत्र आओ भोग तुम अपना लगाओ,
साथ लाना सुत बहू मत भूल जाओ,
स्वाद उनको भी पंजीरी का चखाओ,
वंश की मर्याद को आगे बढ़ाओ,
कुम्भ के स्नान सी आहट यहीं है।
अँजुरी भर -भर .....

दामाद बेटी को यहाँ जल्दी बुला लो,
पुण्य-फल का भाग उनको भी दिला लो,
छूट जाए न कोई नाती - पंती,
शृंखला टूटे नहीं संती -बसंती,
अर्थ की पुड़िया का मंदिर -मठ यही है।
अँजुरी भर -भर ......

छाए  सारे देश  में कुनबा हमारा,
हम चले जाएं रहे सब कुछ तुम्हारा,
देश -सेवा का कभी चूको न
मौका,
किसने पंजीरी के लिए ये हाथ रोका,
संपदा का इस तरह पनघट नहीं है।
अँजुरी भर -भर .....

सज गया दरबार लगी लम्बी कतारें,
जब चलो घर से बहू आरति उतारे,
शुभ शकुन से कारवां अपना बढ़ाना,
फूल शृद्धा के प्रथम शिव पर चढ़ाना,
अपनी जैसे कट गई कट ही रही है।
अँजुरी भर -भर ....

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🎁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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