शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

 आग 🔥🔥 


 [ संस्मरण ] 


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 ✍️लेखक © 


 🔥 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 


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             उसका जन्म एक मध्यम वर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। उसके पिताश्री बहुत अधिक पढ़े -लिखे नहीं थे , पर जितना भी वह पढ़े लिखे थे ,उतना आज के इंटरमीडिएट उत्तीर्ण विद्यार्थी से उनका ज्ञान बहुत अधिक था। माँ एक सामान्य गृहणी ही थीं,लेकिन उस समय की स्थिति और युग के अनुसार उन्होंने विद्यालय का मुख्य द्वार भी नहीं देखा था।बावुजूद इसके वह अपने हस्ताक्षर अवश्य कर लिया करती थीं। उसके पितामह अवश्य दूसरी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद देश के स्वतंत्रता आंदोलन में एक सक्रिय सैनानी थे। जिन्हें दो - तीन बार अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन के कारण जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी। 


         प्रारम्भ में उसे पढ़ने - लिखने के प्रति कोई रुचि नहीं थी।इसलिए सात वर्ष की अवस्था होने पर भी वह विद्यालय नहीं गया और अपने छोटे से गाँव में गिल्ली - डंडा, हरियल- डंडा, गेंद - बल्ला, कंचे आदि खेलने में मस्त रहता था। हमउम्र बच्चों के प्रेरित किए जाने पर वह विद्यालय जाने लगा , पर यह क्या ? उसके बाद उसने रुकने का नाम ही नहीं लिया। वह फिर चला नहीं , बहुत ही संतुलन और धैर्य के साथ दौड़ने लगा। मानो अध्ययन के प्रति उसमें पर लग गए हों। 


             उसे नया सीखने के प्रति एक ऐसी आग लगी जो आज जीवन के सात दशकों के बाद भी ठंडी नहीं पड़ी है।ईश्वर ने चाहा तो आजन्म यह आग बुझने वाली नहीं है। पता नहीं निरंतर आगे बढ़ते हुए कच्ची - पक्की एक पास करने के बाद विज्ञान से स्नातक औऱ उसके बाद अपनी ही मातृभाषा के प्रति विशेष प्रेम होने के कारण उसी में परास्नातक और पी एच.डी. की उपाधि भी प्राप्त कर ली।अंततः राजकीय सेवा में प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के पद पर भी रहा। 


              जब वह कक्षा चार का छात्र था , तो माँ सरस्वती की महती कृपा स्वरूप उसे कविताएं लिखने का शौक भी पैदा हो गया। औऱ वह शौक इस तरह उसके जीवन में आच्छादित हो गया कि फिर कभी रुका नहीं तो नहीं ही रुका। माँ शारदा की कृपा ने ही एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित करने का सुअवसर प्रदान किया। देश की अनेक पत्र -पत्रिकाओं में उसके लेख , समीक्षाएं, कविताएं ,कहानियां, एकांकी आदि प्रकाशित होने प्रारम्भ हो गए। जो क्रम कभी भी नहीं टूट सका।


             इस संस्मरण के नायक ने अपने को कभी भी विशेष नहीं माना। सदैव एक सामान्य मानव के रूप में अपने कार्यों का निष्पादन किया। अपने अध्ययन- काल में अपने नैत्यिक अध्ययन के साथ -साथ उसकी अभिरुचि ज्योतिष , तंत्र ,मंत्र, वास्तुशास्त्र , विज्ञान , सामुद्रिक शास्त्र ,सम्मोहन विज्ञान ,अध्यात्म, जैसे विषयों के प्रति रही । खेलों में उसकी फिर कोई रुचि नहीं रही , जो बचपन में इतनी अधिक थी कि उसे खेलने के अतिरिक्त कुछ  भी नहीं सुहाता था ।मानो  जीवन भर के सारे खेलों का कोटा बचपन में ही पूरा कर लिया हो । उसके अध्ययन के प्रति यह आग से शायद पैतृक संस्कार है ,जो उसे अपने पिताश्री से प्राप्त हुआ है। उसके पिताश्री भी अध्ययन के प्रति इतने जिज्ञासु थे ,कि कोई कागज, पुस्तक , समाचार पत्र आदि मिल जाता ,उसे बिना पूरा पढ़े हुए उसे छोड़ते नहीं थे।


           इसलिए अपने विषयगत अध्ययन के अतिरिक्त उसने लाखों रुपये की दुर्लभ पुस्तकें औऱ ग्रंथ खरीद डाले। उसे किसी से माँगकर पढ़ने में आनंद नहीं आता था ,जितना स्वयं की पुस्तक से आता था। इसलिए यदि कहीं कोई पसंद की पुस्तक मिल जाती तो कितनी भी मँहगी होने पर भी जब तक उसे खरीद नहीं लेता था , शांति नहीं मिलती थी। परिणाम यह हुआ कि हजारों की संख्या में उसका निजी पुस्तकालय बन गया।आश्चर्य से भी आगे की बात यह भी है कि आग आज भी बराबर प्रज्ज्वलित है। जल रही है ,जल रही है औऱ अनवरत जल रही है। 


         मेरे सुधी विद्वान/विदुषी पाठक और यह जानने को उत्सुक हो सकते हैं कि वह कौन है ,जिसके विषय में यह पहेली कही जा रही है। तो इस जिज्ञासा का समाधान करना भी मुझे आवश्यक हो गया है। तो बता ही दिया जाए , अब ज़्यादा प्रतीक्षा भी किस काम की ? तो रहस्य से पर्दा उठा ही दिया जाए। वह कोई औऱ नहीं इसी संस्मरण की लेखनी का लेखक ही है ,जिसके विषय में बेनामी का आवरण पड़ा हुआ था। 


 💐 शुभमस्तु !


 20.11.2020◆7.45अपराह्न।


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