गुरुवार, 19 नवंबर 2020

गहन लिंग का वेद [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नर - नारी की देह में,किया भेद करतार।

कोई सहधर्मिणि बनी,कोई पति आचार।।


नर - नारी की देह के,सकल जगत संबंध।

पति-पत्नी भ्राता-भगिनि,चंदन वन की गंध।


जीव लिंगधारक नहीं,जब तक प्रभु के पास।

आया जब भूलोक में,मिला वही तन रास।।


नारी  अपने रूप पर,करती बहुत   गुमान।

नर को लुब्धक मोहती,छेड़ नृत्य की तान।।


मुर्गा मेढक मोर में,सुन्दरतर नर   जान।

मादा को मोहित करे,नर मृगराज महान।।


जीव जीव में मोह का,चुम्बक है लिंग-भेद।

बिना भेद मोहन नहीं,गहन देह का वेद।।


समध्रुव  आकर्षण नहीं,सदा विकर्षण तेज।

पीछे  हटते देखकर,छोड़ नेह की   सेज।।


प्रेमी के वश  प्रेयसी,हारमोन का खेल।

टेस्टोस्टेरोन  का,   एस्ट्रोजन  से मेल।।


लिंग-भेद चमकार ही,सृष्टि सृजन का मूल।

रचना  करता  देह की,नहीं अंश भर भूल।।


लिंग-भेद से सृष्टि का,सजा सृजन संसार।

नहीं जानता राज ये,जो रचता करतार।।


मानव से पशु,खग बने,पशु,खग से नर देह।

यौनि बदलती कर्म से,'शुभम'बदलता गेह।।


💐 शुभमस्तु !


16.11.2020◆12.15अपराह्न।

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