गुरुवार, 19 नवंबर 2020

देती बिंदी ताल [ कुण्डलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

💃 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                      -1-

महिमा बिंदी की बड़ी,आँक, तिया का माथ।

शत-शत गुना उदोत हो,जब हो बिंदी साथ।।

जब हो बिंदी साथ, ओप में इंदु  चमकता।

बढ़ताआनन तेज,भाल पर ओज दमकता।

'शुभं'न कमतर आँक,भाल बिंदी की गरिमा

बढ़े सौ गुना रूप,बड़ी बिंदी की    महिमा।।


                      -2-

आँधी के इस दौर में,बिंदी रही न   लाल।

साड़ी के अनुरूप ही, देती बिंदी  ताल।।

देती  बिंदी  ताल, हरी, पीली या   नीली।

भूल प्रणय का रंग,चाल बिंदी की  ढीली।।

'शुभं'चरित का खेल,नारि फैशन रजु बाँधी

मनमानी में नारि,बही पश्चिम की   आँधी।।


                      -3-

बाला अनब्याही कभी,नहीं सजाए   भाल।

बिंदी त्रिकुटी पर नहीं, आए कभी अकाल।।

आए कभी अकाल,नहीं हो रूप   प्रदर्शन।

शुद्ध  रहे  आचार, इसीसे बिंदी   वर्जन।।

'शुभम'चरित का अंग,नारि ने जैसा ढाला।

वैसा  ही रँग  रूप, बनाती अपना  बाला।।


                      -4-

छोटी बिंदी का बड़ा, चरित,काज अनमोल।

माथे पर सजती सदा,मूक मंजु  अनबोल।

मूक मंजु अनबोल,नहीं कटि पाद सजाती।

बढ़े चाँदनी चाँद, नारि जब नयन लजाती।।

'शुभं'ओप का ओज,कपोल न भाती चोटी।

यौवन करे धमाल, सुशोभित बिंदी  छोटी।।


                      -5-

बिंदिया   तेरे भाल  की, मोहे मेरे    नैन।

नयन बंद अपने करूँ,मिले न पल को चैन।।

मिले  न पल को चैन,दमकती मानो  चंदा।

सम्मोहन का खेल,व्यथित मन भारी  बंदा।।

'शुभम'न!आती नींद,चैन की करती चिंदिया।

ज्यों ले चुम्बक खींच,भाल की तेरी बिंदिया।


💐 शुभमस्तु !


18.11.2020◆12.15 अपराह्न।


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