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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम
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चलो दीप से दीप जलाएँ।
ज्योति-पर्व की नवल कलाएँ।
घर-घर , गाँव, नगर दीवाली।
रंग-बिरंगी छवियों वाली।।
आतिशबाजी नहीं चलाएँ।
चलो दीप से दीप जलाएँ।।
दीपक जलते आँगन,घर में।
छज्जे,अटा, मुँडेरी, दर में।।
छत पर दीपक झिलमिल गाएँ।
चलो दीप से दीप जलाएँ।।
रलमल होती सरिता जल में।
लगता जलते दीपक तल में।।
देख -देख मन अति हर्षाएँ।
चलो दीप से दीप जलाएँ।।
मधुर -मधुर पकवान बनाए।
माँ ने पूड़ी- खीर खिलाए।।
मोदक, बर्फी, पेड़ा खाएँ।
चलो दीप से दीप जलाएँ।।
पहले श्रीगणेश ही पुजते।
पूजन -थाल रमा के सजते।।
खील- खिलौना बाँटें लाएँ।
चलो दीप से दीप जलाएँ।।
पूजें गुरुजन मात-पिता को।
मातु शारदा ,शशि ,सविता को।।
ज्योति ज्ञान की 'शुभम' दिखाएँ।
चलो दीप से दीप जलाएँ।।
💐 शुभमस्तु !
11.11.2020◆4.30 ! अपराह्न।
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