गुरुवार, 19 नवंबर 2020

परदा [ कुण्डलिया ]

 

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✍️ शब्दकार©

💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                      -1-

परदे की महिमा बड़ी,सब कर्मों की ओट।

परदे  में  दुल्हन  फ़बे, परदे  में  ही  वोट।।

परदे  में  ही  वोट,मंच के सब अभिनेता।

परदे  में  ही पाप, सियासत के भी नेता।।

'शुभम' करे अपराध,आदमी कहता वर दे।

फैलाकर निज हाथ,याचना के घन परदे।।


                      -2-

परदा  आँखों  पर पड़ा, खोया बुद्धि  विवेक।

मानव रहा न आदमी, बना मात्र  नर  भेक।।

बना   मात्र  नर भेक, टर्र में खोया    अपनी।

मानक मरते आज, सभी की अपनी नपनी।।

'शुभम'शुष्क तालाब, उड़ रहा गोपित गरदा।

करता   ओछे   काम,डालकर मोटा परदा।।


                      -3-

परदा पशु,खग  में नहीं, पुण्य न कोई पाप।

परदा   मानव ही करे, करे ईश  का जाप।।

करे   ईश   का   जाप ,   धन्य मानवतावादी।

हरता   जन  के प्राण,बुरे कर्मों का  आदी।।

'शुभम'  धो रहा देह,भरा है मन  में   गरदा।

नारी  के  प्रति हेय, भाव पर बाह   परदा।।


                      -4-

परदा  खग, पशु में नहीं,खुला खेलते  खेल।

मौसम की प्रतिबद्धता,करती तन मन मेल।।

करती तन मन मेल, लाज का काम न कोई।

नारी  लज्जावान, देख लज्जा में    खोई।।

'शुभम'  सभ्यता देख,गाय की बोली  वरदा।

कुदरत की जो माँग,कहाँ फ़िर कैसा परदा।।


                      -5-

परदा  घूँघट का पड़ा, जिज्ञासा  की   बाढ़।

आकर्षण का केंद्र है,मुख की आड़ प्रगाढ़।।

मुख की आड़ प्रगाढ़,फूल की कलिका जैसी

ज्यों-ज्यों खुलता रूप,न्यून जिज्ञासा वैसी।।

'शुभम' सुहागिन रात,दुर्लभा होती    वरदा।

दूल्हा  करता प्रेम,हटाकर झीना   परदा।।


*वरदा= कन्या।

*दुर्लभा=दुल्हन।



💐 शुभमस्तु !


13.11.2020◆3.15अपराह्न।


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