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✍️ शब्दकार©
⛲ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जुबाँ-जुबाँ की साला गाली।
दीवारें ज्यों आला वाली।।
खोखल करता साला घर को,
मिश्री-सी मधुबाला साली।
सोचे बिना जुबाँ पर बसता,
जुबाँ न होती ताला वाली।
पत्नी का कहलाता भाई,
जीभ नुकीली भाला वाली।
क़ानूनन वह भाई जैसा,
बहता प्रेम - पनाला खाली।
जीजाजी के घुटने छूता,
जीजी ने गलमाला डाली।
'शुभम' सार से हीन सदा ही,
फल की ढेरी पाला वाली।
💐 शुभमस्तु !
15.11.2020 ◆3.15अपराह्न।
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