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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कान्हा- कान्हा मैं जपूँ,कहाँ न तेरा ठौर।
तू राधा का श्याम है,ब्रजबाला सिरमौर।।
रज-रज में कान्हा बसा,कहाँ न तेरा धाम।
तू ही मेरा राम है, तू मेरा घनश्याम।।
बड़भागी जग में 'शुभम',ब्रज में नरतन धार।
कान्हा की पदरज मिली,द्वापर का अवतार।।
द्वापर में तो एक थे, नरकासुर औ' कंस।
कलियुग में करने लगे,मानवता का ध्वंस।।
तृणावर्त,बक,अघअसुर,वत्सासुर के वंश।
गली -गली में नाश के, तांडव के हैं अंश।।
कलियुग में अवतार ले,आओ मेरे श्याम।
राक्षस दल को मारकर,दें सुख शांति ललाम।
वृत्ति आसुरी पूतना,गली - गली में चार।
रूप मनोहर धारती, शिशुओं को दें मार।।
मीरा जपती श्याम को,पीकर विष का जाम।
लीन हुई प्रभुनाम में,हँसकर जप घनश्याम।
युग-युग में अवतार लें,बदल बदल निज देह।
आते भारत भूमि पर,मुरलीधर हर गेह।।
गली, नगर,हर गाँव में,होते नित अपराध।
चक्र सुदर्शन दें चला, योगेश्वर निर्बाध।।
शोषक संसद में छिपे,पहन बगबगे वेश।
रक्त मनुज का चूसते,हनें कृष्ण गह केश।।
💐 शुभमस्तु !
28.11.2020◆10.30पूर्वाह्न।
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