गुरुवार, 19 नवंबर 2020

नन्हीं -सी बिंदी [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नन्हीं  - सी   मैं   होती बिंदी।

नारी - मस्तक   भाषा हिंदी।।


पहले तो  मैं  लाल  गोल थी।

नारी -जीवन में अमोल थी।।

अब तो  मैं  साड़ी  की  बंदी।

नन्हीं -सी  मैं   होती   बिंदी।।


अब मैं  हूँ   त्रिशूल - सी पैनी।

मस्तक  पर ज्यों कोई  छैनी।।

हरी,लाल ,काली    छलछंदी।

नन्हीं -  सी   मैं   होती बिंदी।।


मुझे   सजाती   नारी सधवा।

नहीं लगाती  क्वारी,विधवा।।

आचारों   से   रही   न संधी।

नन्हीं - सी  मैं  होती  बिंदी।।


हिंदी में   मस्तक   पर  भाती।

नहीं चरण,कटि पर लग पाती

अरबी   ने   कर दी है   चिंदी।

नन्हीं -सी  मैं   होती   बिंदी।।


ठोड़ी,  नाक , कपोल  लगाए।

तब वह  जोकर बने  हँसाए।।

'शुभम'भाल पर चमके रिन्दी।

नन्हीं - सी  मैं   होती  बिंदी।।


💐 शुभमस्तु !


18.11.2020◆3.00अपराह्न

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