◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
नन्हीं - सी मैं होती बिंदी।
नारी - मस्तक भाषा हिंदी।।
पहले तो मैं लाल गोल थी।
नारी -जीवन में अमोल थी।।
अब तो मैं साड़ी की बंदी।
नन्हीं -सी मैं होती बिंदी।।
अब मैं हूँ त्रिशूल - सी पैनी।
मस्तक पर ज्यों कोई छैनी।।
हरी,लाल ,काली छलछंदी।
नन्हीं - सी मैं होती बिंदी।।
मुझे सजाती नारी सधवा।
नहीं लगाती क्वारी,विधवा।।
आचारों से रही न संधी।
नन्हीं - सी मैं होती बिंदी।।
हिंदी में मस्तक पर भाती।
नहीं चरण,कटि पर लग पाती
अरबी ने कर दी है चिंदी।
नन्हीं -सी मैं होती बिंदी।।
ठोड़ी, नाक , कपोल लगाए।
तब वह जोकर बने हँसाए।।
'शुभम'भाल पर चमके रिन्दी।
नन्हीं - सी मैं होती बिंदी।।
💐 शुभमस्तु !
18.11.2020◆3.00अपराह्न
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें