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✍️ शब्दकार ©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शीत बढ़ी आ गई रजाई।
मौसम ने ली है अँगड़ाई।।
दादी अम्मा शी-शी करतीं।
ओढ़ रजाई सर्दी हरतीं।।
दिन में धूप करे गरमाई।
शीत बढ़ी आ गई रजाई।।
साग चने का मोटी रोटी।
चूर्ण बाजरे की वह छोटी।।
खाते हम सब चुपड़ मलाई।
शीत बढ़ी आ गई रजाई।।
ले-ले स्वाद गज़क हम खाते।
शकरकंद मीठे मनभाते।।
मूँगफली रुचती मधुराई।
शीत बढ़ी आ गई रजाई।।
सरसों की भुजिया है सौंधी।
तेज धूप में आँखें चौंधी।।
स्वेटर की हो रही बुनाई।
शीत बढ़ी आ गई रजाई।।
गेंदा, लाल गुलाब खिले हैं।
मुर्गी बतखें हिले - मिले हैं।।
खेत,बाग,वन शोभा छाई।
शीत बढ़ी आ गई रजाई।।
💐 शुभमस्तु !
01.12.2020◆11.00पूर्वाह्न।
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