611/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
करता पर-उपकार जो,रहता नहीं मलीन।
जाग्रत हो सौभाग्य का,सूरज सदा नवीन।।
सूरज सदा नवीन, खिलें कलियों से पाटल।
भ्रमर करें गुंजार, बरसते नभ से बादल।।
'शुभम्' हरे पर पीर, कष्ट जनगण के हरता।
मानव धर के धीर,मनुजता धारण करता।।
-2-
अपने ही उपकार में, लगा हुआ संसार।
नहीं देखता और की, पीर न करे दुलार।।
पीर न करे दुलार, दर्द औरों को देता।
उर भी नहीं उदार, बना फिरता जग जेता।।
'शुभम्' नाट्य उपकार, भाव के दिखते सपने।
सब मिथ्या आचार, भले लगते सब अपने।।
-3-
नाटक में उपकार के, नेतागण तल्लीन।
मधुर-मधुर हैं बोलियाँ, मन हैं किंतु मलीन।।
मन हैं किंतु मलीन, खबर अपनी छपवाएं।
फोटो हँसें नवीन, नहीं जनहित में जाएँ।।
'शुभम्' देश का हाल, बंद उन्नति का फाटक।
उपकारों का झूठ, चलाया जाता नाटक।।
-4-
मानव तन उपकार का, एक सहज पर्याय।
किंतु नहीं करते सभी, इसका एक उपाय।।
इसका एक उपाय, नाम की कोरी चाहत।
भले न उर में भाव, नहीं देते कण राहत।।
'शुभम्' अधिकतम लोग, बने कर्मों से दानव।
उपकारों से दूर, देह से केवल मानव।।
-5-
गाते पर - उपकार के, कुछ नर केवल गान।
करें नहीं उपकार वे , किंतु चाहते मान।।
किंतु चाहते मान, प्रचारक बनकर अपने।
जनता को दें त्रास, दिखाते दिन में सपने।।
'शुभम्' मियाँ मिठबोल, नशे में नित मदमाते।
निज उपकारी गीत, यंत्र ले लेकर गाते।।
शुभमस्तु !
09.10.2025●6.45प०मा०
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