610/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
उनसे मेरी कोई
जान -पहचान नहीं
कोई रंजिश नहीं
कोई बैर नहीं
इसलिए उनसे
मुझे कोई खतरा भी नहीं।
वे बड़े खूँख़्वार हों
शब्दों में
उगलते हुए ज्वार हों,
मुझे क्या !
मुझे उनसे कोई डर नहीं।
वे बड़े शहंशाह
अपने घर के,
हम छोटे से प्रवाह
अपने नद के,
उनकी अलग राह
अपनी अलग चाह
उनसे मेरा कोई समर नहीं।
न वे मुझे जानें
न मैं उन्हें पहचानूँ
वे अपने में मस्त
मैं अपने में व्यस्त
उन्हें मेरी कोई खबर नहीं।
यह उचित ही है
कि हम परस्पर
अनजान हैं,
वे अलग किस्म के
हम भी अलग जिस्म के
इंसान हैं,
किसी का किसी से
कोई हस्तक्षेप नहीं है,
सही अर्थों में देखें तो
यही उचित है
सही है,
कहीं कोई गड़बड़ नहीं।
शुभमस्तु !
09.10.2025●3.00प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें