बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

खुजलाहट कुर्सी की ऐसी [ नवगीत ]

 620/2025


  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


खुजलाहट 

कुर्सी की ऐसी

चलते -चलते थकें न पाँव।


अंग -अंग में

रौरापन है

कैसे कहाँ खुजाएँ

फड़क रही हैं

तनकर ऊपर

मेरी युगल भुजाएँ

बस्ती -बस्ती

गाँव  -नगर में

लगा रहे हैं कितने दाँव।


गोली 

आश्वासन की मीठी

रहे बड़ी हितकारी

ई वी एम -

बटन जब बोले

पीं-पीं की स्वीकारी

जनता ही तो

पीपल शीशम

बरगद की घन  छाँव।


एकमात्र हम 

देशभक्त हैं

चिंता हमें सताती

हम ही तो 

उजियारा लाते

जले देश की बाती

इसीलिए तो

चौपालों पर

होती है झक - झाँव।


शुभमस्तु !


14.10.2025●10.15 आ०मा०

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