615/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दर्शन लाभ ईश का करता।
मानव वही दोष निज हरता।।
देवालय में प्रतिदिन जाते।
अपने - अपने पाप नसाते।।
नेताओं का दर्शन पाना।
दुर्लभ हुआ कृपा बरसाना।।
द्वारपाल द्वारों पर ठाड़े।
नेता - दर्शन में वे आड़े।।
मात - पिता के दर्शन पाना।
भाग्यवान को मिले सुहाना।।
भोर हुआ सुत दर्शन कर ले।
कृपा करों का आशिष धर ले।।
जीव जगत संसार बनाया।
ईश ब्रह्म की अद्भुत माया।।
दर्शन शास्त्र रहस्य बताए।
अजब पहेली को सुलझाए।।
बाल वृद्ध किशोर नर- नारी।
करे तीर्थ जनता सब भारी।।
नहा रहे हैं बहु जन गंगा।
दर्शन लाभ करें मन चंगा।।
दर्शन नहीं देखना कोरा।
भाव भरा है मन का भोरा।।
दर्शन से जन धन्य हुआ है।
बंद अघों का अतल कुँआ है।।
दर्शन की महिमा अति भारी।
धर्म- धर्म के सब नर- नारी।।
बारह मास करें यात्राएँ।
किंचित घटें न जन मात्राएँ।।
शुभमस्तु !
13.10.2025● 2.15 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें