बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

संस्कार सुस्ताए हैं! [ नवगीत ]

 616/2025


    


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 ईविंटों के

 इन्वेंशन में

संस्कार सुस्ताए हैं।


संस्कृतियों की

होली जलती

इविंटों की दीवाली

पहले रात 

सुहाग मनाएँ

झाड़ कुंज में दे ताली

शादी का क्या

करो कभी भी

बिलकुल नहीं लजाए हैं।


कर लो मौज

मजा सब पहले

रखें ताक पर मर्यादा

नर -नारी

अब बचे नहीं हैं

बचे हुए हैं नर -मादा

क्या होगा

सुहाग शैया पर

पहले सब कर आए हैं।


आगे-आगे

युवा-युवतियाँ

पीछे मात-पिता मजबूर

हम जो करें

दखल मत देना

रहना सौ-सौ कोसों दूर

फेरे पड़े

लौट घर आए

बड़े बुरे पछताए हैं।


शुभमस्तु !


13.10.2025●10.45आ०मा०

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