607/202
शब्दकार©
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सकल सृष्टि में तमस घना है।
यहाँ वहाँ सर्वत्र तना है।।
अपनेपन में छल छद्मों का,
कालकूट का पंक सना है।
आधारित धन पर सब रिश्ते,
मानव का सम्बंध मना है।
हो धनाढ्य पति चाहे नारी,
ऊपर-ऊपर बनाठना है।
चरता चरित घास घूरे पर,
माल भ्रष्टता की जपना है।
दहला नारी नर पर भारी,
नहले नर का मर मिटना है।
'शुभम्' गर्त में मानवता अब,
नहीं फोड़ता भाड़ चना है।
शुभमस्तु !
06.10.2025●01.45आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें