बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

विपदा के साँचे में ढाले [ गीतिका ]

 614/2025


           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


विपदा   के     साँचे      में      ढाले।

मानव    जग    में   बड़े     निराले।।


निशिदिन  तेज     प्रभंजन   चलते,

फिर  भी    वे     रहते     मतवाले।


नेता   अलग    प्रजाति   मनुज की,

कब  बदलें      वे     अपने   पाले।


आम  जनों    का     शोषण  होता,

जो      रहते       बन   भोले भाले।


लगता   सत्य  सभी    को   कड़ुवा,

सत्यवादिता    पर      हैं       ताले।


कहाँ      नहीं      परिवारवाद     है,

बेटा        बेटी       पत्नी      साले।


'शुभम्'    तंत्र     विकृत    है  सारा,

तमसावृत    घर        काले -काले।


शुभमस्तु !


13.10.2025●1.45 आ०मा०

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