608/2025
झूठ न बोले दर्पण
[ गीत ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
झूठ न बोले
दर्पण मुख से
सच जतलाए।
खुले केश
मुख पर विषाद है
क्रोध झलकता
उचित नहीं
यह भाव सुंदरी
रूप सुबगता
बिना एक भी
शब्द निकाले
सब बतलाए।
उर में आग
धधकती क्यों है
कहो कामिनी
किससे रूठी हुई
त्रस्त हो
दहो भामिनी
घर को छोड़
विटप तल ठाड़ी
मन उकताए।
अस्त-व्यस्त हैं वस्त्र
बाल भी बिखरे तेरे
बिंदी लाल विशाल
भाल पर भौंहे घेरे
मत बोलो
मुख-दर्पण बोले
उर दुख कह जाए।
शुभमस्तु !
07.10.2025●3.15आ०मा०
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