609/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मिलते हैं भगवान, सहज समर्पण भाव से।
करें ईश - गुणगान, धन-वैभव दिखला नहीं।।
सहज समर्पण भाव,पति -पत्नी संबंध का।
पार लगाए नाव, प्रेम बढ़ाता नित्य ही।।
करे समर्पण पूर्ण,शिष्य करे गुरु -भक्ति तो।
कर दे क्षण में चूर्ण, बचे नहीं अज्ञान- तम।।
संबल सबल सुरम्य,जहाँ समर्पण- शक्ति का।
मिलती शक्ति अदम्य, प्रेम-वृष्टि होती रहे।।
दृढ़ होता विश्वास, सहज समर्पण भाव से।
जीवन का अनुप्रास,वहीं शक्ति-संचार है।।
सुदृढ़ समर्पण भाव, बुरा-भला मैं आपका।
रहे न कोई घाव, काटे तमस -विकार को।।
करें देश की भक्ति,प्रेम समर्पण भाव से।
वही हमारी शक्ति,सैनिक वीर महान हैं।।
नहीं सुफल परिणाम,बिना समर्पण के मिले।
अतुलनीय अभिराम,वह अभेद्य दीवार है।।
नहीं समर्पण भाव, जहाँ सदा प्रतिरोध है।
शुचिता की दृढ़ नाव,वहाँ डूबती है सदा।।
सुघर समर्पण भाव, संतति जननी- जनक का।
बढ़े अहर्निश चाव, स्वर्ग बनाए गेह को।।
नित खंडित विश्वास,'शुभम्' समर्पण के बिना।
सबको आए रास, रखना वह अक्षुण्ण ही।।
शुभमस्तु !
09.10.2025●8.15आ०मा०
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