612/2025
[माता,पिता,भाई ,बहिन ,बच्चे ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
माता स्वर्ग समान है, ताने सुखद वितान।
निज सुख के हर त्याग से,करे सुखों का दान।।
संतति होती है कभी,उऋण न माँ से मीत।
माता का जिसको मिले, नेह वही जग जीत।।
सुहृद पिता - सा विश्व में, नहीं मिलेगा एक।
रहता भले अभाव में, संतति को नित नेक।।
जननी धरणी पुत्र की,पिता विशद आकाश।
वही मात्र विश्वास है, वही एक शुभ आश।।
कलयुग के भाई नहीं, लखन भरत-से नेक।
देखें दृष्टि पसार के, मिले न जग में एक।।
भले रक्त सम्बंध हों, नहीं बंधुता भाव।
भाई हिस्सेदार है, शेष न प्रियता - नाव।।
दो कुल को ज्योतित करे,यही बहिन का रूप।
नारी वह गृहलक्ष्मी, जननी अटल अनूप।।
बहिन रमा वह शारदा, बहु नारी आयाम।
शक्ति गेह - निर्माण की, देख सुबह से शाम।।
जिस घर में क्रीड़ा करें, मिल बच्चे दो-चार।
स्वर्ग वही शुभ गेह है,शुचिता का व्यवहार।।
चाहत बच्चे की करें, सभी दंपती नित्य।
वही चाँद शुभ गेह का, वही सुयश आदित्य।।
एक में सब
बच्चे भाई बहिन से, माता को सुखवास।
गदगद पिता प्रसन्न हैं, घर में भरा उजास।।
शुभमस्तु !
12.10.2025●10.30आ०मा०
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