बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

अब क्या कुछ भी बाकी है! [ नवगीत ]

 617/2025



©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पहले ही

सब जान लिया है

अब क्या कुछ भी बाकी है!


जिसे देखना

वर्ष अनंतर

पहले ही वह देख लिया

अंदर बाहर

खूब टटोला

अंग -अंग को पेख दिया

जिज्ञासाएँ

मरी हुई हैं

दैनन्दिन की चाकी है।


गाड़ी में

पीछे का डिब्बा

जब आगे जुड़ जाता है

इंजिन रहे

घिसटता पीछे

हाँफ-हाँफ घबराता है

शक्ति निचुड़ती

पहले जिसकी

ढीला पड़ता साकी है।


कहते हो 

जिसको लकीर तुम

वह पत्थर से बनी हुई

जिसे खोज

नवयुग की कहते 

उनसे ही अब ठनी हुई

पहला कदम

रखा जिस पथ में

चरण चंद्रिका थाकी है।


शुभमस्तु !


13.10.2025●11.15 आ०मा०

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