शुक्रवार, 28 जून 2019

अंधविश्वास [लघुकथा]

   एक दिन मैं बटेश्वर तीर्थ स्थल में पत्नी के साथ वहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों में शंकर भगवान के दर्शनार्थ पहुँचा। बटेश्वर तीर्थस्थल यमुना के किनारे पर स्थित है। आगे बढ़ते हुए एक बड़ी भीड़ को पार करते हुए हम आगे बढ़े। सामने यमुना नदी बह रही थी। लेकिन उस समय उसका पानी बहुत ही गदला और मैला था। पानी की स्थिति देखकर मैंने पत्नी से कहा - 'क्या इस पानी में नहा पाओगी। देखो कितना गंदा पानी है।'
   इस पर पत्नी के कुछ कहने से पहले ही पास ही खड़ी हुई एक अन्य अपरिचिता अधेड़ महिला कहने लगी-'इतराओ मत। जमुना मैया हैं।' और अपनी आँखें तरेरती हुई आगे बढ़ गई। मैं उसकी बात का कुछ भी उत्तर देता , इससे पूर्व ही वह चली गई।
   मैंने सोचा, इसी का नाम अंधी आस्था है।जहाँ मथुरा आगरा के नालों, मल मूत्र से भरी नदी को जमुना मैया के नाम पर गोते लगाए जा रहे हैं। हाथ मुँह धोए जा रहे हैं। आचमन भी किए जा रहे हैं। धन्य मेरे देश , धन्य यहाँ की
अंधी आस्था औऱ विश्वास। मैं बिना यमुना में नहाए ही शंकर जी के दर्शन कर लौटा।
ॐ नमः शिवाय।

💐शुभमस्तु !
✍लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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