कविता का तन शिल्प है,
विमल आत्मा भाव।
पूरक दोनों परस्पर,
रहता नहीं अभाव।।
रहता नहीं अभाव,
समन्वय सुंदर होता।
बिना भूमि कवि -कृषक,
नहीं बीजों को बोता।।
तेज बिना कहता नहीं,
'शुभम' रवि को सविता।
भाव शिल्प के बिना,
नहीं कहलाती कविता।।1।
कविता वनिता एक सम,
नव गति नव लय छंद।
नवल ताल भी चाहिए,
चले चाल स्वच्छन्द।।
चले चाल स्वच्छन्द,
उतरती उर में जाए।
ज्यों वनिता को देख ,
पुरुष आकर्षण पाए।।
सरल हृदय मनभावनी,
'शुभम'को भाए वनिता।
भावों से भरपूर,
भावती भावित कविता।।2।
कविता में शृंगार का,
मोहक मृदुल महत्त्व।
अलंकार से सज रहा ,
कवि का कविता - तत्त्व।।
कवि का कविता - तत्त्व,
यमक अनुप्रास सुसज्जित।
ज्यों तन के शृंगार,
नासिका नथुनी सज्जित।।
सहज देह के गठन से,
'शुभम' सजती है वनिता।
बिना कृत्रिम शृंगार,
सहज मनभाती कविता।।3।
कविता सज्जित शब्द से,
शब्द ब्रह्म का रूप।
ब्रह्म जहाँ सत्यं शिवम,
सहज सुंदरम यूप।।
सहज सुंदरम यूप,
भाव की गंगा बहती।
कवि भागीरथ बना ,
सहज निज पथ पर रहती।।
बहती कविता - धार,
रश्मि ज्यों प्रातः सविता।
हृदय - धरा संसिक्त ,
'शुभम 'करती है कविता।।4।
कविता - सृष्टि महान है,
कवि ही उसका ईश।
बिना नियम क्या सृष्टि है!
जाने यह जगदीश।।
जाने यह जगदीश,
वर्ण मात्रा की गिनती।
होनी है अनिवार्य ,
'शुभम' की वाचिक विनती।।
बड़ी नाक हो मुँह पर ,
भावे हमें न वनिता।
ज़्यादा मात्रा भार ,
न अच्छी लगती कविता।।5।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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