सोमवार, 17 जून 2019

कलि कुचाल [दोहे]

 स्वार्थ  लिप्त  संसार सब,
पैसा         माई      बाप।
झूठों  का   बहुमत  यहाँ,
पुण्य  न  कोई   पाप।।1।

मर्यादा    निज   भूलकर,
करते    जन     अपमान।
धन  देकर   मिलता यहाँ,
मानव  को   सम्मान।।2।

धमकी  धक्का  धौंस का,
अनुचित  डाल     दबाव।
गुंडों   के     चढ़ने    लगे,
आसमान पर  भाव।।3।

आशा    करना   व्यर्थ है,
मिल    जाएगा     न्याय।
मौसेरे      भाई      सभी,
चोर    करें   अन्याय।।4।

नारी  का   आँसू    गिरा ,
बहे    राज    औ'   पाट।
नदियाँ   लोहू   की  बहीं,
नष्ट   हो  गए   ठाट।।5।

कौरव-दल के साथ कुछ,
कुछ पांडव-दल      संग।
नारी - कृत  अपमान  से,
हुआ   रंग   में   भंग।।6।

बिना   कर्म  के  ही मिले,
रोटी       दोनों       जून।
निकले  स्वेद  न  देह  से,
उनके   आँगन   सून।।7।

भूसा  भरा    दिमाग़   में,
तन   मन   हुए     अपंग।
जौंक  बना शोषण   करे,
माली    हालत   तंग।।8।

ग़ुब्बारे     में     पंप     से,
दूषित      भरी     बयार।
विस्फोटक नर को   बना,
मज़ा  कर   रहे   यार।।9।

न्याय   गया   न्यायी  गए,
आपाधापी            रोज़।
बिना करे   रबड़ी   मिले,
मिले मुफ़्त में मौज।।10।

पोदीने    के     पेड़   पर,
चढ़ा    दिया     मतिमंद।
रार  ठानता   जनक   से,
फैला  कुल  दुर्गंध।।11।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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