जो सुत अपने जनक का,
नित्य करे अपमान।
उस कुपूत का क्यों भरें,
पेट यहाँ भगवान।।1।
पुत्र वही माँ - बाप का ,
जो करता सम्मान।
सुखी सदा रहता वही ,
जग में मिलता मान ।।2।
तन - मन से होता नहीं ,
जिससे अपना काम।
उस कुपूत की क्या कहें,
खाए रोट हराम।।3।
जीवन भर जो बाप पर,
बनता भारी भार।
हैं कुपूत ऐसे बहुत,
जीवन वह धिक्कार।।4।
पत्नी साले ससुर सब,
लेकर अपने साथ।
पिटवाता जो बाप को,
कलि-कुपूत का हाथ।।5।
धाड़ मार रोवे तिया,
फोड़े चूड़ी आप।
आरोपित रो - रो करे,
जो कुपूत का बाप।।6।
त्रियाचारित फैला रही,
सम्मुख खड़ा कुपूत।
ससुर फँसाने के लिए,
करे पुलिस आहूत।।7।
लालच लगी हराम की,
रोटी तोड़े रोज़।
पूत निकम्मे बहुत से,
कहे 'शुभम' कर खोज।।8।
प्रभु यदि मानव जन्म दे,
देना नहीं कुपूत।
देना चाहे एक ही,
देना 'शुभम' सपूत।।9।
जनक - जननि को कष्ट दे,
जीता है जो पूत।
'शुभम' कीट उससे भले,
होते नहीं कुपूत।।10।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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