मंगलवार, 18 जून 2019

साईं -शरणम [कुंडलिया]

1
साईं  सच   कुम्हला  रहा,
छाई       झूठ   -   बहार।
सच  के   सँग  कोई  नहीं,
झूठों      का      दरबार।।
झूठों       का      दरबार,
हो  रही   हा हा   ठी ठी।
सच   का  देश - निकार,
गल्प   की  बातें  मीठी।।
बेटा        बेटा       रहा ,
न किसी  का कोई भाई।
देख    रहे   हो शुभम,
कहाँ अब कलयुग साईं।।

2
साईं   तुमने   सब  दिया,
देय        रहा      भरपूर।
कर्महीन     नर    चूसते,
अहंकार      में      चूर।।
अहंकार       में      चूर,
धर्म   की  रक्षा   करना।
शुभम  न  हो मग़रूर,
न्याय की भिक्षा  भरना।।
आज अचानक  विपति,
शीश   पर   ऐसी  आई।
जपता      तेरा      नाम ,
दुःख   हरो   मेरे  साईं।।

3
साईं  क्या  अपराध मम,
करता     हूँ    सत  कर्म?
अपने   जाने   में   कभी,
करता    नहीं     अधर्म।।
करता    नहीं     अधर्म,
तदपि   आपदा   घेरती।
अपने       होते      शत्रु ,
शारदा   बुद्धि   फेरती।।
समझ  न पाया शुभम,
रहस्यावृत      प्रभुताई।
उबरेंगे  कब  दिवस  बुरे,
कह   दो    प्रभु    साईं।।

4
साईं    क्या  विनती  करूँ,
अंतर्यामी                 ईश।
उर    के   भीतर  तुम बसे,
शिरडी      के     जगदीश।
शिरडी      के     जगदीश,
सभी  सुख दुःख पहचानो।
करो      दूध      का    दूध ,
शुभम की विनती मानो।
मात -पिता गुरु औ' सखा,
दाता    दो        कुशलाई।
पूजन   वंदन   क्या  करूँ,
साँस - साँस   में   साईं।।

5
साईं     इस     संसार  का,
स्वार्थ     भरा    हर  रूप।
उदर  भरो उसका   प्रथम,
स्वयं    गिर   पड़ो   कूप।।
स्वयं    गिर   पड़ो   कूप,
न्याय    खूँटी   पर टाँगा।
बेईमान               हज़ार,
उन्हीं का जनमत जागा।।
जीना      दूभर      हुआ ,
बाँट    में  है    कपिआई।
मानव        दानव - रूप,
शुभम रक्षा कर साईं।।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🙏 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...