मौसम में छाने लगी,
शोभन सजल बहार।
प्यासी धरती को मिली,
नन्हीं बूँद फुहार।।1।
नभ में छाए विरल घन,
झाँकें जिनमें धूप।
कभी हवा शीतल बहे,
कभी तपन का रूप।।2।
जेठ मास के ताप से,
तपते धरती धाम।
शांति मिले तरुवर तले,
व्यजन हुए बेकाम।।3।
डाली पर चूँ - चूँ करें,
गौरैया दो क्लांत।
दाना - पानी जब मिले,
मन में उपजे शांत।।4।
तरबूजा बरसा रहा ,
लाल प्रेम रस - धार।
ग्रीष्म काल ने दे दिया,
मानव को उपहार।।5।
मस्त महक खरबूज की,
खींच रही है ध्यान।
बैठ मेंड़ पर खाइए,
तब करना जी स्नान।।6।
गंगा की धारा विरल,
सुंदर शांत प्रवाह।
रजत बालुका मौन धर,
उर बिच उर्मि उछाह।।7।
यौवन मदमाती चढ़ी,
लता अमृता नीम।
औषधि का भंडार है,
अगणित गुण निस्सीम।।8।
गुडूची छिन्नरुहा कहो,
या गिलोय दो नाम।
अर्श दाह मधुमेह में,
एक लता बहु काम।।9।
छाया छाया चाहती,
तरु तल छिपी सभीत।
पादप लू में काँपते,
छाया घन मनमीत।।10।
तप से तप कर मेदिनी,
निखरी कंचन - रूप।
झर -झर-झर बुँदियाँ झरें,
लुप्त हो गई धूप।।11।
पावस के भिनसार में,
सेंध लगाती धूप।
डाँटें बादल गरजकर,
भरते सरिता कूप।।12।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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