आए हम श्रीवृन्दावन धाम।
जहाँ विचरे नित राधेश्याम।।
वृंदावन की ब्रजरज पावन।
जन्म-जन्म के पाप नसावन।
ब्रज का हृदय पुण्य वृंदावन।
महिमा अवर्णनीय मनभावन।
श्री राधेश्याम के लीलाधाम।
आए हम श्रीवृन्दावन धाम।।
निधिवन में लीलारस भरते।
क्रीड़ा सघन यामिनी करते।।
भोग लगाकर पान चबाते।
कर शृंगार नृत्य रम जाते।।
आज भीआते श्यामा श्याम।
आए हम श्रीवृन्दावन धाम।।
प्रेमभक्ति कण कण में हरशे।
गोपी -नृत्य रंग - रस बरसे।।
हवा जपे राधे की माला।
गूँज रहा संगीत निराला।।
शांति भरती है हृदय ललाम।।
आए हम श्रीवृन्दावन धाम।।
कान्हा की मुरली अति न्यारी।
आठ सखी राधा की प्यारी।।
राधा की सेवा में आवें।
कान्हा के सँग रास रचावें।।
मधुमंगल श्रीदाम सुदाम।
आए हम श्रीवृंदावन धाम।।
यमुना जी के घाट सुपावन।
श्रीकृष्ण की लीला साधन।।
चीरघाट श्रृंगारघाट हैं।
वृन्दावन के ठाटबाट हैं।
बसे ब्रज-कण-कण राधेश्याम
आए हम श्रीवृन्दावन धाम।।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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