रविवार, 9 जून 2019

ग़ज़ल

सुख के बदले दुःख का आना।
जीवन  का  दस्तूर  पुराना।।

अपनी   राहें   चलते -  चलते,
मंज़िल पर खुद को पहुँचाना।

काँटों के सँग लाख रुकावट,
लक्ष्य-सिद्धि तक मत घबराना।

जितने  मुँह    हैं  उतनी बातें,
ख़ुद को इसमें मत उलझाना।

सुनना सबकी करना मन की,
निज विवेक का 'शुभम' जमाना।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...