कवियों का संगम हुआ,
मानो कुम्भ प्रयाग।
बहती धारा काव्य की,
खुले हमारे भाग।।1।
कहीं प्रेम रस धार है,
वीरोचित रसनाद।
कोई दर्शन में बहा,
भिन्न -भिन्न रस स्वाद।।2।
बजी ख़ूब ही तालियाँ,
फ़ूल खिले हर होठ।
कोई बातों में मगन ,
लगा चार जन गोठ।।3।
ताली सबको चाहिए ,
अपनी ताली मौन।
जो निज कविता पढ़ रहा,
नहीं जानते कौन!!4।
वाह वाह भी हो रही ,
करतल ध्वनि भी ख़ूब।
पर संबंधों के खेत में,
नहीं जम रही दूब।।5।
अपनी कविता हो चुकी,
जाना है घर दूर।
बैग उठा चलते बनो,
यह कैसा दस्तूर।।6।
ख़ूब बटोरी तालियाँ,
बाँधी गठरी मोट ।
ज्यों नेताजी चल दिए,
ले जनता के वोट।।7।
गाकर अपने गीत वे,
चढ़कर ग़ज़ल -विमान।
शेष बचे दस - पाँच ही,
पढ़कर किया पयान।।8।
कवि नेता में भेद क्या ,
'शुभम' न पाया जान।
अपनी ढपली को बजा,
किया शीघ्र प्रस्थान।।9।
मुख्य -अतिथि अध्यक्ष जी,
सुनना अब कवि -गान।
अपनी पढ़ हम ये चले,
बाहर खड़ा विमान।।10।
'इनके ' ही घरबार हैं,
'वे' सब बेघरबार।
इसीलिए कहता 'शुभम',
स्वार्थ भरा संसार।।11।
पीछे मुड़कर दृष्टि की,
चेहरा हुआ मलीन।
अर्द्ध शतक में पाँच-दस,
कविजन थे आसीन।।12।
कहते हैं 'विद- वान' हैं,
कविजन सुधी महान।
देख दृश्य ऐसा लगा,
है ये असत बयान।।13।
अपने हित में सब निरत,
कवि भी उनमें एक।
अपनी कह सुनता नहीं,
क्या यह 'शुभम'विवेक?14।
कथनी मीठी खांड- सी,
करनी नीम कुनैन।
कवि से जाकर पूछ लो,
ऐसा ही कुछ है न??15।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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