चाहे बिक जाय देश हमार,
पहनूँ फूलों के हार मैं।
योग्यता अँगूठा छाप मेरी,
अभिशाप नहीं वरदान मेरी,
लिखने - पढ़ने में लाचार ।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।1
हत्या भी कीं अपहरण किए,
दुष्कर्मों को हम वरण किए,
और किए हैं अत्याचार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।2
टूण्डला तक मेरी यात्रा है,
चेलियाँ बहुत प्रिय पात्रा हैं,
कर लूँ परदेश विहार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।3
तन से दिमाग से काम नहीं,
जो कहता हूँ वह काम सही,
बस रसना का व्यापार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।4
कँगले से करोड़पति बनना,
पैदल से हेलीकॉप्टर चढ़ना,
लगते हैं पाँच ही साल।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।5
देता नहीं केवल लेता मैं,
सौ-सौ झूठों का नेता मैं,
सहस्रों की लगी कतार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।6
आश्वासन कितने दिलवा लो,
चमड़े की जीभ से कहवा लो,
मुख से बहती है बयार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।7
कहते हैं नोट बरसते हैं,
एम ए डी लिट् भी तरसते हैं,
यहाँ ऋतु है सदाबहार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।8
दस -दस पीढ़ी का इंतज़ाम,
नेता मंत्री का यही काम,
सब धन्धे हैं बेकार ।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।9
सी एम, पी एम बन जाऊँगा,
अच्छे - अच्छों को नचाऊँगा,
मेरे मन की यही पुकार ।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।10
यहाँ नाम और नामा भी है,
सूट - बूट पायजामा भी है,
"शुभम" बदलो रूप हज़ार।
पहनूँ फूलों के हार मैं।।11
💐शुभमस्तु !
✍🏼©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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