सोमवार, 5 नवंबर 2018

धन धन्वंतरि त्रयोदशी

[ दोहे]
     धन की महिमा का करूँ,
     मित्रो    आज    बखान।
     आँख   मूँदकर    दौड़ता ,
     पीछे     सकल    जहान।।

    धन - अर्जन  के  हैं बहुत,
    साधन    सुलभ    अनेक।
    धवल-श्याम    राहें   बनीं 
    खोना     नहीं     विवेक।।

    ठग  नेता  और  चोर  के,
    साधन    अनुचित  गुप्त।
    चिकने    चेहरे   चमकते ,  
    जनता -  जन   उपभुक्त।।

    विद्या -धन   है     श्रेष्ठतम,
    चुरा   न      पाए      चोर।
    बाँट  न   पाए     बंधु   भी ,     
    जीवन     का     सिरमौर।।

    बिना ज्ञान - धन  सब वृथा,
    पशु -  मानव    सब   एक ।
    पल-पल वांछित मनुज को,
    निर्मल      ज्ञान  - विवेक।।

    संतति -  धन  की   चाह में,
    विकल    रहें      नर - नारि।
    सत-संतति   ही सफल धन,
    वरना     गदला        वारि।।

    स्वास्थ्य   श्रेष्ठतम  धन सदा,
    स्वस्थ   रखें      निज    देह।
   आयुर्वेद   के    जनक   प्रभु,
   धन्वतरि             निःसंदेह।।

    स्वस्थ   नहीं   हो  देह यदि ,
    मन    भी     हो   अस्वस्थ ।
    धन का  क्या    उपयोग   है,
    मानव -  धन   तन  स्वस्थ।।

   कन्या -  धन  से   मनुज की,
   सदा       सुरक्षित      योनि।
  *"शुभम"* करें    रक्षा  सदा,
    सर्वश्रेष्ठ          नर -  योनि।।

   शुभमस्तु !
✍©रचयिता 
डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम "

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