[ दोहे]
धन की महिमा का करूँ,
मित्रो आज बखान।
आँख मूँदकर दौड़ता ,
पीछे सकल जहान।।
धन - अर्जन के हैं बहुत,
साधन सुलभ अनेक।
धवल-श्याम राहें बनीं
खोना नहीं विवेक।।
ठग नेता और चोर के,
साधन अनुचित गुप्त।
चिकने चेहरे चमकते ,
जनता - जन उपभुक्त।।
विद्या -धन है श्रेष्ठतम,
चुरा न पाए चोर।
बाँट न पाए बंधु भी ,
जीवन का सिरमौर।।
बिना ज्ञान - धन सब वृथा,
पशु - मानव सब एक ।
पल-पल वांछित मनुज को,
निर्मल ज्ञान - विवेक।।
संतति - धन की चाह में,
विकल रहें नर - नारि।
सत-संतति ही सफल धन,
वरना गदला वारि।।
स्वास्थ्य श्रेष्ठतम धन सदा,
स्वस्थ रखें निज देह।
आयुर्वेद के जनक प्रभु,
धन्वतरि निःसंदेह।।
स्वस्थ नहीं हो देह यदि ,
मन भी हो अस्वस्थ ।
धन का क्या उपयोग है,
मानव - धन तन स्वस्थ।।
कन्या - धन से मनुज की,
सदा सुरक्षित योनि।
*"शुभम"* करें रक्षा सदा,
सर्वश्रेष्ठ नर - योनि।।
शुभमस्तु !
✍©रचयिता
डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम "
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