अँधेरा दिलों का मिटा लो तो दीवाली है,
उठी ऊँची मीनारें गिरा लो तो दीवाली है।
ये जातियाँ ये मज़हब सभी दीवारें हैं,
इन्हीं दीवारों को हटा लो तो दीवाली है।
करोड़ों तारे हैं दो चाँद सूरज हैं ,
इनका उजाला भी पा लो तो दीवाली है।
ये जलते हुए दीपक भी बड़े सुहाने हैं,
इनसे ही सबक पा लो तो दीवाली है।
यहाँ तो दिन में भी अँधेरा है छाया,
दिन में भी उजाले डालो तो दीवाली है।
रौशनी देने में भेद नहीं करता है दिया,
दिए जाने की समझ पा लो तो दीवाली है।
मकड़ियों के जाले से अधिक जाले दिल में,
"शुभम" दिली जाले जला लो तो दीवाली है।।
शुभमस्तु!
तमसो मा ज्योतिर्गमय
✍©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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