मंगलवार, 27 नवंबर 2018

अच्छा ! तो तुम इंसान हो  [ लघु व्यंग्य कथा]


   एक दिन वह अपने  निवास   खण्डहरधाम से मार्ग भटक गया और एक घनी बस्ती में आ घुसा। उसने देखा कि यहाँ पर अनेक लंबे -लंबे दो पैरों पर चलने वाले प्राणी घूम रहे हैं। उनके दो -दो हाथ भी हैं।  उनके साथ कुछ  छोटे -बड़े  काले , भूरे , सफेद  कई प्रकार के प्राणी  भी रह रहे हैं। ऐसे विचित्र वातावरण को देखकर वह चौंका । उसे ये बड़ा ही मनोरंजक लगा। इसलिए वह अपना बसेरा भूलकर एक सघन बरगद की  ऊँची डालपर रहने लगा।  दिन में उसे नहीं दिखता था। इसलिए अँधेरा होने पर बस्ती में घूमने निकलता था। एक दिन वह रात को लगभग 9 बजे बस्ती  के एक मकान की मुँडेर पर बैठा था। तभी उसने तेज -तेज आवाज के साथ कुछ लोगों को परस्पर विवाद करने, झगड़ने  और मारपीट की स्थिति देखी। उससे रहा नहीं गया तो एक पास ही खड़े प्राणी से पूछ बैठा। " ए भैया तुम कौन हो । इस तरह आपस में क्यों लड़ रहे हो?"
वह प्राणी कहने लगा -"हम लोग इंसान हैं । "
"अच्छा! तभी आप लोग इस तरह लड़ रहे हो! ऐसे तो पशु गधे, घोड़े , कुत्ते , बिल्ली भी आपस में नहीं लड़ते ! "
"तुम कौन हो , जो मुँडेर पर बैठे हुए मुझसे पूछताछ कर रहे हो? कहाँ रहते हो । यहाँ क्या कर रहे हो?"
"बड़े भाई! मुझे उल्लू कहते हैं।"
" हा! हा!! हा!!! उल्लू ?"
"हाँ भाई! उल्लू ।मैं पड़ौस के एक खंडहर में रहता हूँ । आज रास्ता भटक कर यहाँ आ गया ,तो आप जैसे प्राणियों से भेंट हो गई। अच्छा भी लगा   .....और .... "
"औऱ क्या  बताओ तो ..."
"और ये कि मुझे ये देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम अपने को एक ओर तो इंसान भी कहते हो दूसरी ओर ये कि अक्लवन्द भी सबसे ज्यादा बनते हो और लड़ते पशुओं से भी बुरी तरह। ऐसे तो हम उल्लू कहलाने वाले भी नहीं लड़ते!"
"बात तो तुम्हारी सोलहों आने सच्ची लगती है। "
"लगती नहीं , है भी सच्ची ही। तुम लोगों को इस तरह नहीं लड़ना -भिड़ना चाहिए।  सुना है तुम हम उल्लुओं की पूजा करते हो ?"
"हाँ, ये सच है। तुम लक्ष्मीजी के वाहन हो , इसलिए। शायद तुम्हारी पूजा से लक्ष्मी जी भी आ जाएं हमारे घर में। जहाँ उल्लू  वहाँ लक्ष्मी। इसलिए
उल्लू  पूजो  धन मिले,
पर   बुद्धि   हर  जाय।
बुद्धिमान  बिन लक्ष्मी,
क्या  जग  में  कर पाय।।"
"बहुत चालाक और चालू प्रतीत होते हो। अपना काम निकालने के लिए गधे को भी बाप बना लेते होंगे"
"अरे  उल्लू  भाई! तुम तो अक्ल भी रखते हो !"
"हाँ मित्र ! उल्लू हूँ , पर इतना उल्लू  भी नहीं।"
इतना कहकर उल्लू इंसानों की बस्ती से अपने खंडहर की ओर उड़ गया।
तभी से उल्लू इंसानों की बस्ती से दूर बियाबान में रहते हैं।

💐शुभमस्तु !
✍🏼 ©लेखक
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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