मैं सुमन हूँ
गाछ की बन्द कली में
प्रतीक्षा है मुझे अभी
कली खिलने की
चहकने महकने की।
मैं खिलूँगा
रवि रश्मियों से मिलूँगा
बिखेरूँगा सुगन्ध की लहरें
ज्यों केसरिया गगन में फहरे
रंगहीन अदृश्य निराकार
लाते हुए परिवेश में बहार
करता हुआ आकर्षित मधुमाक्षिकाएँ
कीट पतंगे रंगीन तितलिकाएँ
वे आएँ आएँ और ले जायें
मीठा मधुर रस रसना से पियें पाएँ
नन्हे -नन्हे पीले पराग कण
नए जीवन का करने संचरण।
मेरे सुर्ख लाल लाल हैं दल
सम्मोहन है जिनका बल
बहुत ही संक्षिप्त मेरा जीवन
किन्तु कृतार्थ करता हुआ
निज को मेरी निजता को
कोई शिकायत नहीं नियति से
जीवनी -शक्ति से
जीवन की गति से
प्रकृति से ।
अंततः मुरझाना ही है मुझे
अल्पकालावधि में
जाना ही है मुझे
किन्तु फल और बीजों का सृजन
यही है मेरी प्रार्थना वंदन नमन
देकर इस जगत को
चला जाऊँगा
मैं सुमन हूँ
सु मन ही कहलाऊँगा
क्योंकि मेरा मन भी सुंदर है,
तन तो सौंदर्य का समंदर है।
रंग और खुशबू कोई धोखा नहीं
तुम्हारी आँखों या नाक को रोका नहीं
जाकर असार संसार को देता हुआ
कुछ भी तो नहीं किसी से लेता हुआ।
तुम तो मानव हो
सुदृढ़ देहधारी,
कृतार्थ कर लो
जीवन है स्नेह बारी,
जो देता है वही जीता है
वरना आना -जाना
सभी का रीता है।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼© रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें