बुधवार, 7 नवंबर 2018

झाँकी नेताधाम की

आओ   बच्चो   तुम्हें दिखाएँ
झाँकी      नेताधाम       की ।
इस मिट्टी से तिलक न करना
मिट्टी      है        बेकाम की।।
ये नेता बेशरम ये नेता बेधरम!

पूरब   से  पश्चिम   तक  देखो
नेताओं     का     जलवा   है।
उत्तर से   दक्षिण   तक छाया
हल्लागुल्ला      बलवा    है।।
चूसा  जाता  है   जनता   को
यहाँ  रोज  हर  रात औ' दिन।
मजबूरी   का   लाभ   उठाया
जाता  बच्चो  हर  पल छिन।।
आश्वासन   तो  ऊँट   सरीखे
मदद  जीरे - सी   नाम    की।
इस मिट्टी से तिलक न करना
मिट्टी    है      बेकाम     की।।
ये नेता बेशरम ....

ये   है  अपनी  लखनऊ नगरी
नाज़    इसे       नेताओं   पर।
ठाठ  नवाबी    बाट    नवाबी
श्वेत   वसन    लेताओं    पर।।
दारुलशफा  और  सचिवालय
में    दलाल       शोभा   पाते।
सेवा    में   तत्पर   जनता के
भैंस    सहित   खोया  खाते ।।
सदा जागृत   लखनऊ  नगरी
ज़रूरत   नहिं    विश्राम की।।
इस  मिट्टी से तिलक न करना
मिट्टी      है      बेकाम   की।।
ये नेता बेशरम....

देखो    लगा      मुखौटे   नेता
वोट       माँगने      आते    हैं।
पाँच  साल तक दिखे न चेहरा
आने     में       शरमाते    हैं।।
किस मुँह से जनता बिच जाएँ
'पानीदार'       बड़े        नेता।
मौसम आता  जब  चुनाव का
 दिया   वचन   बिसरा   देता।।
नाम  न   होगा   क्या   उनका
फ़िक्र    नहीं     बदनाम  की।।
इस मिट्टी  से तिलक  न करना
मिट्टी    है      बेकाम      की।।
ये नेता बेशरम....

'भाईचारा'     अगर    सीखना
तो    सीखो       नेताओं    से।
जाति - बंधु  की  सेवा  करना
 इन    सेवा - दाताओं     से।।
जेब गर्म  निज  भरी  तिजोरी
यही    देश   हित   सेवा   है।
वे  भी   भारत  के 'सपूत ' हैं
खानी      काजू     मेवा   है।।
पेंशन जितनी बार विधायक
मिले      मलाईधाम       की।
इस मिट्टी से तिलक न करना
मिट्टी    है      बेकाम    की।।
ये नेता बेशरम...

मज़हब   धर्म की रार छेड़ना
वोटर  -  बैंक    बढ़ाता    है।
अपना  इन्हें  समझने वाला
ख़ुद   मूरख   बन  जाता है।।
बात  जोड़ने  की  करते  हैं
भग्न   एकता   जनता   की।'
'फूट डालकर राज करो' बस
नीति   यही   है   नेता   की।।
नाम   राम का   ले   लेते  हैं
फ़िक्र   नहीं  राम धाम की।।
इस मिट्टी से तिलक न करना
मिट्टी    है      बेकाम   की।।
ये नेता बेशरम...

काला   अक्षर    भैंस  बराबर
आई ए एस    पर  शासन  है।
कथनी करनी अलग अलग ये
नेता    का   अनुशासन    है।।
भाषण  झूठे   आश्वासन   से
जनता    को    ठगते   रहना।
मुँह में राम   बगल  में  छोरी
राम -  राम    जपते   रहना।।
सदा    दिवाली    रंगीं   रातें
किशमिश  काजू बादाम की।
इस मिट्टी से तिलक न करना
मिट्टी      है    बेकाम    की।।
ये नेता बेशरम...

याचक   से     दाता  बन जाए
उसको       नेता    कहते    हैं।
चेहरे   बोल   बदल  कर  आये
अभिनेता     उन्हें    कहते   हैं।।
देता    जो     सनदें   चरित्र की
जिसका   कोई    चरित्र   नहीं।
जनता  से    तनजा    की यात्रा
का    कोई      भी   चित्र   नहीं।
कोई परिश्रम शुभम करे क्यों
जब    तक   मिले   हराम  की।।
इस  मिट्टी  से तिलक  न करना
मिट्टी       है      बेकाम    की।।
ये नेता बेशरम !ये नेता बेधरम!!

💐शुभमस्तु !
✍🏼©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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