सोमवार, 31 मई 2021

पाहन-सा घिस-घिस है जाना ! 🎄 [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पाहन-सा घिस-घिस है जाना।

अपना  दृढ़ कर्तव्य  निभाना।।


जीवन की  सरिता  है  चालू।

घिस-घिस पाहन बनते बालू।

सरिता  का  सौंदर्य  सजाना।

पाहन-सा घिस-घिस है जाना।


लुढ़क  रहे    हैं   धीरे -  धीरे।

कुछ मँझधार पड़े कुछ तीरे।।

बढ़ने का  हर  पल  है  ठाना।

पाहन-सा घिस-घिस है जाना।


कितने  सागर  तक  जा पाते।

बालू बन  कुछ भवन बनाते।।

चलना!चलना!चलना! जाना

पाहन-सा घिस-घिस है जाना।


मानव  बनता   जाता  पाहन।

करता  पाप  व भरता आह न।

मकड़ी   जैसा   ताना - बाना।

पाहन-सा घिस-घिस है जाना।


पाहन   नहीं  पिघलते  पाया।

घिस जाने पर लघुतम काया।

सरिता  के  सँग  गाए  गाना।

पाहन-सा घिस -घिस है जाना।


'शुभम' सीख   बालू  से लेता।

नहीं   बैठकर    अंडे   सेता।।

जग में  जगता  मधुर  तराना।

पाहन-सा घिस-घिस है जाना।


🪴 शुभमस्तु !

१७.०५.२०२१◆२.००पतनम

मार्तण्डस्य।


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