बुधवार, 19 मई 2021

ऊपर देने के लिए! 🌳 [ कुण्डलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

ऊपर  देने  के  लिए ,लेते  नित  उत्कोच।

शुद्ध वायु को बेचते,किंतु समझ है पोच।।

किंतु  समझ   है पोच, दबा के लेते   पैसा।

लूट   रहे   हैं लोग,समय आया  है   ऐसा।।

'शुभम'मनुज की देह,घूमते हिंसक भू पर।

कहते  देना  दाम, हमें  जाकर के ऊपर।।


                         -2-

ऊपर  जा  देना पड़े, सबको पूर्ण  हिसाब।

चित्रगुप्त  की  है  खुली, पूरी एक  क़िताब।।

पूरी  एक  क़िताब,  हाल सब लिखते  तेरा।

अमिट कर्म का लेख,नहीं कह सकता मेरा।।

'शुभम' न होती भूल,किया करता जो भू पर।

मिलता है परिणाम,सभी को जाकर  ऊपर।।


                         -3-

ऊपर  वालों  की  लगी, लंबी एक    कतार।

कोई   चढ़ता  यान  में ,कोई मँहगी   कार।।

कोई   मँहगी  कार, दुपहिया कोई   चढ़ता।

ले - ले कर उत्कोच,दिनों दिन ऊपर बढ़ता।।

'शुभम 'डकैती आज,बदलती सूरत भू पर।

चित्रगुप्त  की  दीठ, न  बचता कोई  ऊपर।।


                         -4-

ऊपर  वाले के लिए,सब जन एक  समान।

नग्न देह जाना पड़े, तज कर तीर - कमान।।

तज कर  तीर-कमान,न चलती  नेतागीरी।

जिसके हैं सत काम,'शुभम' होता वह मीरी।

अनुशंसा  का  खेल, चला करता है  भू पर।

केवल कर्म प्रमाण, जीव जब जाता ऊपर।।


                         -5-

ऊपर  जाना  चाहता, करता कारज    नीच।

कीचड़ के संस्कार को, भाती काली कीच।।

 भाती   काली  कीच,  ऊपरी करे   कमाई।

दुख   भोगे  संतान, कष्ट  में रहे    लुगाई।।

'शुभम'हिए की बंद,आँख मानव की भू पर।

नहीं  मनुज अनजान, चाहता जाना ऊपर।।


🪴 शभुमस्तु !


१६.०५.२०२१◆४.००पतनम मार्तण्डस्य।

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